रिसर्च जर्नल ‘समागम’ की 25 वर्षों की यात्रा

साल 2000, नवम्बर में मध्यप्रदेश का विभाजन होता है. एक नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का उदय होता है. तब मन में खयाल आता है कि क्यों नहीं भौगोलिक रूप से विभाजित दोनों राज्यों के बीच सांस्कृतिक सेतु बनकर एक पत्रिका का प्रकाशन किया जाए. संयोगवश पत्रिका का नाम भारत सरकार द्वारा ‘समागम’ आवंटित किया जाता है. कतिपय कारणों से एक सपना, सपना ही रह जाता है और ‘समागम’ को फिर मीडिया, सिनेमा और साहित्य पर केन्द्रित शोध पत्रिका के रूप में आगे की यात्रा तय की जाती है. सीमित संसाधन और अव्यवसायिक पत्रिका होने के कारण श्वेत-श्याम में ही रह जाते हैं. कंटेंट पर समझौता नहीं करने के कारण दिवंगत सुपरिचित सहित्यकार एवं राजनेता बालकवि बैरागी, प्रेमचंद साहित्य के विशेषज्ञ दिवंगत कमलकिशोर गोयनका, इंडिया टुडे के वरिष्ठ संपादक श्री जगदीश उपासने सहित अनेक सुप्रतिष्ठित लोगों का सहयोग और स्नेह मिला. देशभर के मीडिया विशेषज्ञों, शोधार्थी एवं शिक्षकों का साथ मिलने से ‘समागम’ रिसर्च की विशिष्ठ पत्रिका के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर पायी.

साल 2025 ‘समागम’ के लिए खास है क्योंकि यह हमारा रजत जयंती वर्ष है. हमारी कोशिश रही है कि अंक विशेषांक नहीं, विषय विशेष का हो. हर बार एक नए विषय के साथ मीडिया, सिनेमा और साहित्य के विद्यार्थियों से रूबरू होते हैं. 25 वर्षों में हमारे किए-धरे का यह संक्षिप्त विवरण है. यह बताना लाजिमी है कि वर्ष 2011 में इंडिया टुडे ने अपनी समीक्षा में ‘गंभीर’ पत्रिका बताया. ‘हंस’ पत्रिका के साथ ही अनेेक पत्र-पत्रिकाओं ने भी ‘समागम’ के कंटेंट की तारीफ की. दूरदर्शन पर ‘समागम’ के बरस्ते संपादक मनोज कुमार को तीन बार दर्शकों से संवाद करने का अवसर मिला. हिन्दी लेखन के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, मध्यप्रदेश का ‘यशवंत अरगरे शुद्ध हिन्दी लेखन सम्मान’ एवं उत्कृष्ट संपादन के लिए दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल का ‘डॉ. शिरोडकर सम्मान’ से नवाजा गया.

Find What You Need :

हमारी उपलब्धियाँ

विशेष उत्कृष्टता

पत्रिका प्रकाशित
0 +
पुरस्कार मान्यताएँ
0 +
खुश पाठक
0 +

प्रोफेसर मनोज कुमार

संपादक

संपादक के बारे में

रजत जयंती मना रही रिसर्च जर्नल ‘समागम’ के संपादक मनोज कुमार साल 1965 के माह अक्टूबर की 07 तारीख को तब अविभाजित मध्यप्रदेश के रायपुर (अब छत्तीसगढ़) में जन्मे. चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट से कॅरियर आरंभ कर रेडियो और टेलीविजन प्रसारण की दुनिया में सक्रिय हैं. कम्युनिटी रेडियो के विशेषज्ञ बतौर पर वे मध्यप्रदेश शासन के आदिमजाति कल्याण विभाग की संस्था ‘वन्या’ के लिए आठ कम्युनिटी रेडियो की स्थापना एवं संचालन के साथ माखनलाल पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में रेडियो कर्मवीर की स्थापना के लिए पहले रेडियो सलाहकार रेडियो कर्मवीर की राष्ट्रीय सलाहकार समिति में सदस्य मनोनीत.

इसके पूर्व आदिमजाति कल्याण विभाग की बच्चों की मासिक पत्रिका ‘समझ-झरोखा’ में संपादक. यहीं से प्रकाशित पाक्षिक आलेख सेवा ‘वन्या संदर्भ’ का संपादन. वर्ष 1983 में देशबन्धु समूह से पत्रकारिता आरंभ एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम बहुरंगी हिन्दी दैनिक ‘समवेत शिखर’ संपादक. महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ कीआलेख सेवा ‘विक्रम संवाद’ का संयोजन-संपादन. डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, महू में मीडिया प्रभारी. माखनलाल पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में एडजंक्ट प्रोफेसर के रूप में रेडियो अध्यापन.

उपलब्धियां

पुस्तकें

मध्यप्रदेश हिन्दी अकादमी, भोपाल द्वारा ‘साक्षात्कार’ शीर्षक से पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर वर्ष 1995 में पुस्तक का प्रकाशन. वर्ष 2006 में इसी पुस्तक का संशोधित द्वितीय संस्करण. ‘कम्युनिटी रेडियो’ पुस्तक का प्रकाशन.आलेखों का संग्रह ‘पत्रकारिता से मीडिया तक’ पुस्तक का प्रकाशन वैभव प्रकाशन, रायपुर द्वारा.मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना पर शोधपरक पुस्तक ‘शिवराज बने श्रवण कुमार’ एवं मध्यप्रदेश की खेल गतिविधियों पर शोधपरक पुस्तक ‘छू लो आसमां’ का प्रकाशन आलेख प्रकाशन,दिल्ली. संपादित पुस्तकें : शोध आलेखों की निधि ‘मीडिया एवं सिनेमा’, शोध आलेखों की निधि ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’, शोध आलेखों की निधि ‘समाज, संचार एवं सिनेमा’ एवं ‘गांधी साद्र्धशती’ का प्रकाशन.

सम्मान

हिन्दी में विशिष्ट लेखन के लिए मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा ‘हिन्दी सेवी सम्मान’., दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल द्वारा श्रेष्ठ संपादन के लिए ‘डॉ. विजय शिरोडकर संपादक सम्मान’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर बिहार द्वारा श्रेष्ठ संपादन के लिए ‘विद्या वाचस्पति’ सम्मान

फेलोशिप

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा विकास पत्रकारिता (मध्यप्रदेश शासन द्वारा संचालित योजनाओं के अध्ययन) के लिए फेलोशिप एवं यहीं से राष्ट्रीय भाषाई पत्रकारिता शोध परियोजना के अंतर्गत समाचार पत्र नवभारत के विशेष अध्ययन के लिए फेलोशिप.

हमारे सहयोगी

Exciting Event Schedule and Activities

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Ut elit tellus, luctus nec ullamcorper mattis, pulvinar dapibus leo.

25

Jul, 2023

25

Jul, 2023

हमारी ईबुक निःशुल्क डाउनलोड करें

हमारे शुभचिंतक पाठक

‘समागम’ एक ऐसी शोध पत्रिका है जो खासतौर पर हिन्दी मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में ज्ञान के प्रसार और विश्लेषण को समर्पित है। यह पत्रिका शोधार्थियों, पत्रकारों और विद्वानों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है, जहाँ यह सामाजिक परिवर्तन, तकनीकी नवाचार और मीडिया की भूमिका पर गहन चिंतन प्रस्तुत करती है। पत्रिका न केवल शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उभरते पत्रकारों को प्रेरित कर नैतिक पत्रकारिता के प्रति जागरूकता बढ़ाती एवं अपनी भाषा में शोध की गुणवत्ता को बनाए रखने का एक अनूठा प्रयास है।

संजीव शर्मा असिस्टेंट डायरेक्टर, न्यूज आकाशवाणी, भोपाल

‘समागम पत्रिका’ एक प्रतिष्ठित और गंभीर शोध पत्रिका है, जो हिन्दी भाषा में उच्च कोटि के शैक्षणिक और शोधात्मक लेखों के प्रकाशन के लिए जानी जाती है। यह पत्रिका साहित्य, भाषा, संस्कृति, समाज और शिक्षा से जुड़े विभिन्न विषयों पर आधारित मौलिक शोध प्रस्तुत करती है। समागम पत्रिका में प्रकाशित लेख विद्वानों, शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए उपयोगी होते हैं। इसकी गंभीरता, गुणवत्ता और प्रामाणिकता इसे अन्य पत्रिकाओं से अलग बनाती है। यह पत्रिका शोध के क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करती है और विचार-विमर्श का सशक्त मंच प्रदान करती है। डॉ श्रीपर्णा तरफदार

डॉ श्रीपर्णा तरफदार सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग बंगवासी मॉर्निंग कॉलेज, कोलकाता

समागम पत्रिका पढ़ते दो दशक हो गए। इन वर्षों में पत्रिका के अनेक अच्छे अंक और विशेषांक निकले हैं जो संग्रणीय हैं। मैंने कई अंक सहेज रखे हैं। यही नहीं अपने मित्रों को जन्मदिन और विवाह वर्षगांठ पर यह अंक भेंट भी कर देता हूं। मनोज कुमार जी ने जिस परिश्रम से इस पत्रिका के कंटेंट और आकल्पन के लिए परिश्रम किया है सराहनीय है। वंदनीय है। मध्य प्रदेश में तो इस तरह की यह इकलौती हिंदी पत्रिका है। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

अशोक मनवाणी प्रभारी संयुक्त संचालक जनसंपर्क विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

समागम पत्रिका से काफी पुराना नाता है उतना ही जितना इसके संपादन मनोज कुमार जी से। आज के युग में जहां शोध पत्रिकाओं की भरमार है, उसमें समागम शोध पत्रिका वास्तव में गंगा नदी-सी पवित्र, निर्मल और अविरल धारा के साथ प्रवाहित हो रही है। यह पत्रिका एक अटल और अकाट्य सच को समेटे हुए है। समागम में शोध पत्रों और शोधार्थियों को जो मंच प्रदान किया है, वह उन्हें संबल देता है। समागम शोध पत्रिका न केवल मध्यप्रदेश (भोपाल) में अपितु भारत के लगभग मध्य में होने पर धुरी का कार्य कर रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह शोध पत्रों और अन्य वैचारिक लेखों की केंद्रीय पत्रिका है।

डॉ. मनोज कुमार जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी (DIPRO), हरियाणा सरकार

‘समागम’ जैसी पत्रिकाएं जब सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकार के साथ अवतरित होती हैं तो पाठक भी उसका स्वस्ति वाचन करते हैं। मैं आपके रजत जयंती वर्ष के लिए हृदय से शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह आपको खूब सक्षम बनाएं ताकि आप वर्षानुवर्ष तक पत्रिका को जीवंत बनाये रखें।

डॉ. विकास दवे निदेशक, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल

समागम के पच्चीस वर्ष की यात्रा में साथ चलने वालों में देशभर के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। पत्रिका अपनी रजत जयंती वर्ष मेें प्रवेश कर गयी है तो बरबस स्मरण हो आता है कि यह एकला चलो का परिणाम है। विषय की विविधता और नए शोध विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने में संपादक के रूप में मनोज जी अपना अलग स्थान बनाया है।

डॉ. आरती सारंग पुस्तकालयाध्यक्ष, माखनलाल चतुर्वेदी
राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार, विश्वविद्यालय, भोपाल

समागम शोध पत्रिका ने अपने विषयों को बहुत विशद रखा, जितने अंक प्रकाशित हुए उनमें विज्ञान, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, धर्म, ज्ञान, राजनीति, वित्त, प्रशासन, अर्थनीति, परंपराएं, स्वतंत्रता संघर्ष, फिल्म, मनोरंजन जैसे सभी विषयों को समग्र रूप में समाहित किया गया। हर बार एक नया कलेवर आपको चौंकने पर मजबूर करता है। इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि इसके कवर हमेशा बहुत आकर्षक होते हैं। मुख्य रूप से समागम शोध पत्रिका ने शोध और संदर्भपरक पत्रकारिता को आधार दिया है।

संजीव परसाई लेखक और सामाजिक संचार विशेषज्ञ

समागम देश की ऐसी इकलौती मासिक पत्रिका है, जिसके प्रत्येक अंक में मीडिया के विभिन्न आयामों पर गंभीर विमर्श होता है. यह पत्रिका मीडिया से जुड़े हुए जिज्ञासु लोगों की बौद्धिक क्षुधा शांत करती है. पुराने और नए दौर की पत्रकारिता का तुलनात्मक अध्ययन भी यदाकदा 'समागम' के अनेक अंकों में देखने को मिलता है. कोई न कोई नया विषय प्रस्तुत करना समागम का ध्येय बन गया है. फिर चाहे वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बारे में हो, अथवा कठपुतली कला के बारे में ही क्यों न हो. पत्रकारिता पर शोध विषयक लेख भी समागम को समृद्ध करते हैं. पत्रकारिता के साथ-साथ समय-समय पर साहित्यिक विषयों का संस्पर्श भी समागम में दृष्टव्य होता है. कुल मिलाकर समागम समकालीन समय की महत्वपूर्ण पत्रिका है, जो मीडिया और साहित्य पर पैनी दृष्टि रखती है.

गिरीश पंकज प्रांतीय अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति रायपुर
Post Views: 679